
ये दुनिया बड़ी बदबख्त है की नयी सोच को झुठलाती है,
बड़े रुतबे को सलाम बजाती है,
नयी कोपल को मसलने की आदत है,
पुराने जंक खाये खण्डरों की करती इबादत है,
गुमनाम हो या मशहूर, हर हालात में इंसान तबाह है,
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?
मिटटी के घर बनाते हैं हम मिटटी के इंसान,
पढ़े लिखे हैं फिर भी हैं नादान,
हर मंज़र पाने या खोने काआखिर मिलता एक ही सिला है,
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?
अंधेरों में कितनी भी रौशनी कर लें,
यूँ तो चाँद को भी दामन में भर लें,
फिर भी इस चकाचौंध में मन अंदर अँधेरा घना है,
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या हैं?
– Shailaza Singh
This poem has been inspired by the last line of late Shri Guru Dutt’s song…
If you want to listen to this poem, then please click on the link https://www.youtube.com/watch?v=tK5N0CsAH_k&t=2s