
कमर सहारा मांगे,
पाँव मुड़ना नहीं चाहते,
हाथों को हिलना नहीं है,
दिमागी जुड़ना नहीं चाहते.
बुद्धि चलती नहीं, वही पुराना राग सुनाती है,
करवटों के बिस्तर में, रातों को नींद नहीं आती है,
कुछ घुटने अकड़ रहे हैं,
जकड़े हुए लगते हैं सारे खयालात ,
वही बातें होती हैं , चाहे कोई भी करे बात,
क्या दौर आया है, सुनना किसी को गवारा नहीं,
इन दिनों सब रोती हुई शादी में हैं,
कोई खुश कवरा नहीं,
कहने को पेड़ हैं , पर सांस नहीं आती,
ये क्या कश्मकश हैं जो समझ नहीं आती.