
क्या करूँ ए माझी, उम्मीद मेरी मरती नहीं ,
मैं चाहे कितनी बार भी गिर जाऊं, या ठोकरे खाऊं,
वह किसी से डरती नहीं।
लाखों बार हुआ है, सपने टूट जाते हैं ,
हज़ारों बार वह भंवर में डूब जाते हैं ,
फिर भी आहें मेरी वीरानों से गुज़रती नहीं।
क्या करूँ ए माझी, उम्मीद मेरी मरती नहीं।
चलती हूँ यहाँ अपना हौंसला लिए,
मन फिर से जला लेता है आशाओं के लाखों दिये,
कैसे कैसे लोग मुझसे आगे निकल जाते हैं ,
अक्सर बिना सर पैर के इरादों को हम सबसे आगे खड़ा पाते हैं ,
पर ये बात जाने क्यों मुझे कभी अखरती नहीं ,
क्या करूँ ए माझी, उम्मीद मेरी मरती नहीं।
ऐसा भी नहीं है की बुलंदियों के ख्वाब नहीं हैं ,
ऐसा भी नहीं है की कोई सीने में खौलता हुआ सैलाब नहीं हैं ,
फिर भी पैमाने की प्यास छलकती नहीं,
क्या करूँ ए माझी उम्मीद मेरी मरती नहीं।
शैलजा सिंह