उम्मीद उम्र देखती तो सुकून की ज़िन्दगी जी पाते,
कोई इधर न भटकता और हम भी उस मोड़ पर न जाते.
न सपने देखते न उस दरवाज़े पर लगाते टकटकी,
न चलती कोई नज़्म ज़हन में, न आती किसी को मौसिकी,
अजनबी ख्वाइशों के सैलाबों में हम न डूब पाते.
उम्मीद उम्र देखती तो सुकून की ज़िन्दगी जी पाते,
कोई इधर न भटकता और हम भी उस मोड़ पर न जाते.
आहटों को कह देते की कोई घर में नहीं रहता,
रोज़ दर पर ना खेलें ,
बंद करलेते आरज़ू की आखें.
ताकते नहीं यूँ रंगों के मेले,
तेरे मिलने की खुद ही खुदा को ऐसी गुहार न लगाते.
उम्मीद उम्र देखती तो सुकून की ज़िन्दगी जी पाते,
कोई इधर न भटकता और हम भी उस मोड़ पर न जाते.
रातों में मेहखानों में न लगती दिलजलों की महफ़िलें,
न बनते दीवाने, न भूलती मंज़िलें,
मेह की आगोश में,
यु बेवजह राही नहीं सो जाते,
उम्मीद उम्र देखती तो सुकून की ज़िन्दगी जी पाते,
कोई इधर न भटकता और हम भी उस मोड़ पर न जाते.

Dil ko chu liya apki in lines ney, respect and love for the deep thought. Is samndar c gahrai ko kalam se bya Krna aasaan nahi
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