इस जंगल जैसे शहर में,
भीड़ और कोतुहल के किनारे,
वह दिखा मुझे सफ़ेद सा,
चेहरे पर उसके मंद सी मुस्कान थी,
हथेली में समां जाए ,
इतनी नन्ही सी जान थी .
निहारती रही मैं उसको,
पर नाम न दे पायी .
वह थोड़ा चलने लगा,
मैं भी उसके पीछे चल पड़ी,
कुछ सुझा नहीं उसके अलावा ,
उस पल , उस घड़ी .
यु लगा उसमे ताक़त असीम है ,
फुर्ती से बढ़ जायेगा ,
शायद हम दोनों को एक दूजे से सुकून मिल पायेगा .
पर न जाने क्यों ,
वक़्त को ये मंज़ूर नहीं था
या शायद हालात ने किया शिकार ,
की जाने अनजाने घातक हुआ दिल पे वार.
वह मंज़र, वह पल हवा के साथ गायब हो गया .
अब तक समझ नहीं पायी क्या हुआ ,
पर कुछ तो था और वह खो गया .
