खयालनामा

तू कभी दिल की बात शायद किसी को बताता नहीं..
पर अफ़सोस दिल-ए-दास्ताँ हम को छुपाना आता नहीं..
हुक उठती है तो दिल जले से धुआं उठना लाज़मी बात है..
बस इस दर्द भरे दिल की दुनिया के लिए एक सौगात है..


खुदाया, न रही तमन्ना किसी के आने की
न रही झुस्तजू कोई रस्म निभाने की..
जंगल की ये पगडण्डी…
कभी एक हरे भरे शहर में हुआ करती थी…

तू भी खूब है ए दोस्त
समय का बहाना भी है खूब ,
कौनसा आशिक़ ऐसा जो मिटने के डर से
न बनाए किसीको मेहबूब.
तारे भी समय के साथ ओझल हो जाते हैं…
पर उनकी दास्ताँ उनकी आग के किस्से सदियाँ सुनती है ..
डूबते हुए सूरज में भी एक रौशनी नज़र आती है …
टूटना तो किस्मत है…सब एक दिन टूट जायेंगे …
पर जो टूटने से पहले जी लिए….
वही सिकंदर दुनिया को याद आएंगे
-शैलजा

Leave a comment