
ग़मों को दिल में दबाये चलता है कोई
ओढ़ नकाब हस्ती आँखों का, निकलता है कोई
ढूंढ़ता है राहत , सुकून से भरा एक दामन
जहाँ वह भुला दे अपना हर गम
पर देखता है की ग़मों की चादर ओढ़े दुनिया है सोई
ग़मों को दिल में दबाये चलता है कोई
बेबसी के जूते पहन छालों से पैर छिल जाते हैं
खुद के तो गम थे ही… औरों के भी मिल जाते हैं
ढूंढ़ता है हमसफ़र की ग़मों को बाँट लें
कौन सा कम या ज़्यादा… थोड़ा सा छांट लें
पर देखता है की हमनवां ने भी एक माला है पिरोई
ग़मों को दिल में दबाये चलता है कोई
झूलास्ति धुप में दर्द से समझौता कर लिया उसने
खुद की ही आहों से अपना ज़ख्म भर लिया उसने
अब वह मिलता है औरों से और उनके ग़मों की दास्तान सुनता है
अब वह खुद के लिए नहीं औरों के लिए राहत के फूल चुनता है
पी जाता है खुद के अश्क जो आँख उसकी रोई
ग़मों को दिल में दबा कर चलता है कोई
शैलजा सिंह